Saturday, 23 April 2011

सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का - So Gaya Hai Zamir Aaj har Insaan Ka

सो गया है  ज़मीर आज हर इन्सान का, 
तभी तो इन्सान-इन्सान का दुश्मन है, 
तभी तो चोरी-डकेत का फैशन है, 
तभी तो खून-खराबे का मौसम है | 

सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का, 
तभी तो सराफत-इंसानियत की बहार जाती रही है, 
तभी तो फ़र्ज़-कर्त्तव्य के फूल खिलते नही है, 
तभी तो इंसाफ-इमानदारी भीड़ में कही खो गयी है | 

सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का, 
तभी तो रिश्वत युग आ गया है, 
तभी तो कलयुग आ गया है, 
तभी तो बस अनर्थ ही अनर्थ हो रहा है | 

सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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