सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का,
तभी तो इन्सान-इन्सान का दुश्मन है,
तभी तो चोरी-डकेत का फैशन है,
तभी तो खून-खराबे का मौसम है |
सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का,
तभी तो सराफत-इंसानियत की बहार जाती रही है,
तभी तो फ़र्ज़-कर्त्तव्य के फूल खिलते नही है,
तभी तो इंसाफ-इमानदारी भीड़ में कही खो गयी है |
सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का,
तभी तो रिश्वत युग आ गया है,
तभी तो कलयुग आ गया है,
तभी तो बस अनर्थ ही अनर्थ हो रहा है |
सो गया है ज़मीर आज हर इन्सान का !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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